विषय अध्ययन

प्रथम विश्व युद्ध में वीसी से सम्मानित भारतीय वीर दरवान सिंह

प्रथम विश्व युद्ध में विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त भारतीय दरवान सिंह नेगी की कहानी।

Darwan Singh Negi

Credit: USI-CAFHR

प्रथम विश्वयुद्ध में भारत के 6 वीरों को ब्रिटेन के सर्वोच्च वीरता सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। वार्षिक स्मरणोत्सव के अंग के रूप में ब्रिटेन के लोगों ने उन वीरों के नाम वाली कांस्य स्मरण पट्टिका उनके मूल देश को भेंट कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की। यह पुरालेख उनकी गाथा सुनाता है।

नाम: दरवान सिंह नेगी

जन्म: 4 मार्च 1883

जन्म स्थान: भारत का करबर्तिर गांव

युद्ध की तारीख: 23 - 24 नवंबर 1914 की रात

युद्ध का स्थान: फेस्तुबर्त के निकट, फ्रांस

रैंक: नायक

रेजिमेंट: 1ली बटालियन, 39वीं गढ़वाल राइफल्स

दरवान सिंह नेगी का जन्म 4 मार्च 1883 को भारत के करबर्तिर गांव में हुआ था। प्रथम विश्वयुद्ध दौरान वह 39वीं गढ़वाल राइफल्स की 1ली बटालियन में नायक (कॉरपोरल पद के समकक्ष) थे।

23 की रात से 24 नवंबर 1914 को उनकी रेजिमेंट फेस्तुबर्त के निकट दुश्मन से ब्रिटिश खाईयों को वापस हासिल करने का प्रयास कर रही थी। दो बार सिर और बांह में घाव लगने और राइफलों की भारी गोली-बारी और बमों के धमाके के बीच होने के बावजूद दरवान सिंह नेगी उन प्रथम सैनिकों में थे, जिन्होंने खाइयों में घुसकर उन्हें जर्मन सैनिकों से मुक्त कराया। दरवान सिंह नेगी को उनकी अनुपम वीरता के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया, उनकी प्रशस्ति में लिखा है:

23-24 नवंबर की रात, फ्रांस के फेस्तुबर्त के निकट जब रेजिमेंट दुश्मन से अपनी खाइयों को वापस लेने का प्रयास कर रही थी उस दौरान, और दो बार सिर और बांह में घाव लगने और निकट से हो रही राइफलों की भारी गोली-बारी और बमों के धमाके के बीच होने के बावजूद खाइयों में घुसकर उन्हें जर्मन सैनिकों से मुक्त कराने में दिखाई गई उनकी अनुपम वीरता के लिए।

बाद में वह सूबेदार पद (कैप्टन के समकक्ष) से भारतीय सेना से सेवामुक्त हुए। दरवान सिंह नेगी की मृत्यु 1950 में हुई। उत्तराखंड के लैंसडाउन स्थित गढ़वाल राइफल्स के रेजिमेंटल म्यूजियम का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है।

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प्रकाशित 20 जून 2016