अफगानिस्तान और उसके आस-पड़ोस
भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त सर जेम्स बेवन द्वारा 22 अप्रैल 2014 को दिल्ली पॉलिसी ग्रुप को दिया गया अभिभाषण।
“ईश्वर आपको नाग के जहर, बाघ के दांतों और अफगानों के प्रतिशोध से बचाए।”
ये शब्द मेरे नहीं हैं। ये शब्द सिकंदर महान जैसे व्यक्ति के हैं जिसने अफगानिस्तान में रहकर प्रत्यक्ष अनुभव हासिल किया था। मैं अपने उद्गार के आरंभ में इस उक्ति को इसलिए शामिल करना चाहता था ताकि मैं यह जता सकूं कि अफगानिस्तान कभी भी बाहर वालों के लिए एक आसान जगह नहीं रहा है। ईरानी यह बात जानते थे। रूसियों को भी इस बात का इल्म था।
और ब्रिटिश लोगों को भी अपने इतिहास से यह ज्ञात है। ब्रिटिश साम्राज्यवादी युग के कवि रुडयार्ड किपलिंग को ब्रिटिश साम्राज्यवाद में भरोसा था। लेकिन फिर भी वे अफगानिस्तान में हस्तक्षेप करने में अधिक यकीन नहीं रखते थे। अपनी सबसे निराशापूर्ण कविताओं में से एक में उन्होंने लिखा:
“जब घायल होकर अफगानिस्तान के मैदानों में पड़े हों
और आपके शेष बचे प्राणों को छीनने जब औरतें आप पर हमला करें,
तो बस किसी तरह घिसट कर अपने राइफल तक पहुंचना और उड़ा लेना अपना भेजा
और ईश्वर के पास एक सैनिक की तरह जाना।”
तो पहला सवाल जो आप पूछेंगे – और यही सवाल ब्रिटेन के बहुत से लोग भी पूछेंगे—कि ब्रिटेन अफगान युद्ध में शामिल क्यों है? जवाब आसान है: हमारे लिए अफगानिस्तान महत्वपूर्ण है और हम उसकी अनदेखी नहीं कर सकते।
इसका सबसे अधिक महत्व हमारी सुरक्षा के लिए है। 9/11 के बाद हमने अफगानिस्तान में प्रवेश किया ताकि हम अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों द्वारा उस देश को अपने लिए सुरक्षित क्षेत्र बनाए जाने से रोक सकें, और यदि अफगानिस्तान फिर से आंतकियों के लिए सुरक्षित भूमि बनने वाला हो तो इससे न केवल इसके आस-पास के पड़ोसी देशों के लिए खतरा उत्पन्न होगा बल्कि ब्रिटेन भी इसकी चपेट में आएगा।
इसका रणनीतिक महत्व है, क्योंकि एक अस्थिर अफगानिस्तान इस संपूर्ण क्षेत्र के लिए और भारत सहित इस क्षेत्र के हमारे मित्र देशों के लिए खतरे के रूप में होगा।
यह राजनैतिक और गहरे व्यक्तिगत स्तर पर भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछ्ले एक या अधिक दशक के दौरान ब्रिटेन ने अफगानिस्तान में अपना जन-बल और आर्थिक संसाधन दोनों लगा रखे हैं। यहां चलने वाले हमारे अभियानों के कारण हम पर अरबों पाउंड का बोझ पड़ा है। जबसे ये अभियान शुरू हुए हमारे 400 से अधिक बहादुर सेवाकर्मी पुरुष और महिलाओं को अफगानिस्तान में अपनी जान गंवानी पड़ी है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए दृढ़-संकल्प हैं कि उन्होंने जो कीमत चुकाई है वह उनके बलिदानों के अनुरूप हों।
और यही कारण है कि – जिस बिंदु पर मैं आज बल देना चाहता हूं – वह यह कि ब्रिटेन 2014 के बाद अफगानिस्तान से हटने नहीं जा रहा। हमारी युद्धक टुकड़ियां वहां से निकल रहीं है जो इस साल के अंत के हट चुकी होंगी। लेकिन अफगानिस्तान की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है और इतनी नाजुक कि हम या अन्य अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी इसे पूरी तरह छोड़कर नहीं जा सकते। इसलिए भविष्य में एक उचित अवधि तक ब्रिटेन को अफगानिस्तान के मामले में शामिल रहना होगा।
विशेष तौर पर:
- अफगानिस्तान की सुरक्षा सुनिश्चित बनाए रखने में हम मदद करना जारी रखेंगे। अफगानिस्तान के लोगों को उनकी सुरक्षा में मदद देकर हम अपनी ही सुरक्षा कर रहे हैं। इसलिए ब्रिटेन द्वारा अफगान नेशनल आर्मी के विकास में मदद की जा रही है। काबुल के निकट हम एएनए ऑफिसर अकैडमी के लिए सहायता और प्रशिक्षण मुहैया करा रहे हैं जिसे “सैंडहर्स्ट इन द सैंड” के नाम से जाना जाता है। एएनए के संवर्धन के लिए 2014 के बाद भी भरपूर मात्रा में कोष उपलब्ध कराना भी जारी रखेंगे।
- हम अफगानिस्तान के विकास में योगदान देना जारी रखेंगे। विकास में सहयोग के लिए कम से कम 2017 तक हम 30 करोड़ डॉलर की सहायता देना जारी रखेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो तरक्की हासिल की गई है उसे कायम रखा जाए।
- हम अफगानिस्तान में लोकतंत्र को समर्थन देना जारी रखेंगे। भारत और अन्य देशों के साथ मिलकर हमने हाल ही में संपन्न हुए सफल चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाई है। हम अफगानिस्तान में ऐसी संस्थाओं के निर्माण में मदद कर रहे हैं जो देश में सुशासन, कानून का राज, उत्तरदायित्व और दीर्घकालीन स्थिरता सुनिश्चित करे।
तो अफगानिस्तान के लिए कैसी संभावनाएं हैं? अच्छी, यदि हम अपनी योजना पर आगे बढ़ते रहें।
हम आगे बढ़ रहे हैं। अब सुरक्षा का जिम्मा लगभग पूरी तरह अफगान नेशनल आर्मी के जिम्मे है। अब संपूर्ण अफगानिस्तान के नागरिकों की सुरक्षा के लिए नाटो के नेतृत्व वाला इंटरनेशनल सिक्योरिटी असिस्टेंस फोर्स नहीं, बल्कि एएनए केंद्रीय भूमिका निभाता है। हाल में संपन्न सफल चुनावों में भी एएनए ने ही सुरक्षा मुहैया कराई।
देश भर में आर्थिक विकास दिखाई पड़ता है: अफगानिस्तान की जीडीपी 2001 के बाद से आज लगभग दस गुना बढ़ गई है और काबुल एक व्यावसायिक केन्द्र के रूप में उभर रहा है।
शिक्षा में सुधार हो रहा है: लगभग 60 लाख अफगानी बच्चे आज स्कूलों में पढ़ रहे हैं जिनमें 20 लाख बालिकाएं हैं, और सफल विकास की यदि कोई एकल कुंजी है तो वह है बालिकाओं की शिक्षा।
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सुधार: एक दशक में जीवन प्रत्याशा में 18 वर्ष की वृद्धि हुई।
और, सरकार में सुधार: इस साल का राष्ट्रपति चुनाव अफगानिस्तान की सजीव स्मृति में सत्ता हस्तांतरण का पहला शांतिपूर्ण उदाहरण होगा। इस चुनाव ने दिखा दिया कि किस प्रकार स्वयं अफगानी नागरिक लोकतांत्रिक भविष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह तथ्य है कि 75 लाख मतदाताओं ने हर प्रकार की हिंसक धमकियों के बावजूद मतदान किया और यह अफगानों द्वारा अपने भविष्य की दिशा निर्धारित करने की उनकी प्रबल इच्छा को दर्शाता है। अधिक से अधिक संख्या में अफगान दूसरे देशों से मतदान के लिए घर लौटे। अब तक ऐसे अफगानों की संख्या 50 लाख हो चुकी है।
क्या इन सब बातों का यह अर्थ है कि शांति प्रक्रिया आसान होगी? नहीं, शांति की सारी प्रक्रियाएं लंबी, जटिल और मुश्किलों भरी होती है। यहां भी यह प्रक्रिया अपवाद नहीं होगी।
लेकिन क्या एक अधिक स्थिर, लोकतांत्रिक और खुशहाल अफगानिस्तान बनाना संभव है? हां, बशर्ते हम एक साथ मिलकर इसमें मदद करें।
इस प्रयास में भारत को केन्द्रीय भूमिका निभानी है। अफगानिस्तान से भारत के बहुत महत्वपूर्ण हित जुड़े हैं। अफगानिस्तान एक स्थिर और शांत क्षेत्र हो और यहां के भारत में आतंकवादी गतिविधियां न चलाई जाएं और क्षेत्रीय अस्थिरता न फैले यह सुनिश्चित करना भारत के व्यापक हित में है।
और अफगानिस्तान में भारत का वह प्रभाव है जो किसी भी अन्य देश का नहीं है। भारत पर अफगानी लोग भरोसा करते हैं। ओपीनियन पोल हमेशा यह दिखाते हैं कि यहां के लोग किसी भी दूसरे देश की तुलना में भारत को अधिक तरजीह देते हैं। अफगानिस्तान से भारत के निकट होने और इसके विशाल आकार का यह अर्थ है कि आने वाले दिनों में यह वहां महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वाह करेगा।
भारत की समृद्धि और अफगानिस्तान के साथ इसके निकट व्यापारिक संबंधों के कारण इसकी भूमिका इस देश के विकास और अर्थव्यवस्था को टिकाऊ बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होगी। 2 अरब डॉलर का भारतीय सहायता कार्यक्रम अफगानिस्तान के विकास के दोनों पहलुओं- बिजली और सड़क जैसी बड़ी परियोजनाओं तथा कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने जैसी छोटी स्थानीय परियोजनाओं में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है।
भारत सरकार द्वारा अफगानिस्तान में किए जाने वाले कार्य जितने महत्वपूर्ण हैं उतने ही महत्वपूर्ण हैं निजी भारतीय उद्यमों द्वारा यहां किए जाने वाले कार्य। भारतीय कंपनियां अफगानिस्तान के सबसे बड़े निवेशकों में हैं। पिछले साल भारतीय कंपनियों के एक संघ ने लौह अयस्क की खुदाई के 10 अरब डॉलर का ठेका हासिल करने में सफलता पाई है। अन्य भारतीय कंपनियां भी खनिज, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करना चाहती हैं। आने वाले दशकों में अंतराष्ट्रीय आर्थिक मदद में धीरे-धीरे कमी आएगी। ऐसे में भारत के नेतृत्व वाली निजी कंपनियों की भूमिका एक समृद्ध और स्थिर अफगानिस्तान की स्थापना में महत्वपूर्ण होगी।
इस प्रकार अफगानिस्तान का महत्व ब्रिटेन और भारत दोनों के लिए व्यापक है और दोनों ही अफगानिस्तान के लिए भी उतने ही अहम हैं। इसलिए मेरा यह मानना है कि स्थिर, शांत, समृद्ध, लोकतांत्रिक अफगानिस्तान की स्थापना में अगले कुछ वर्षों तक ब्रिटेन और भारत के साथ मिलकर काम करने की अधिक संभावनाएं है।
और यह हो रहा है। ब्रिटेन और भारत अफगानिस्तान के बारे में एक दूसरे के साथ अधिकाधिक विचार-विमर्श करते हैं। हमारे दोनों प्रधानमंत्री जब भी मिलते हैं आपस में इसकी चर्चा करते हैं। पिछले साल वे अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और विकास के मुद्दे पर एक संयुक्त कार्य-समूह गठित करने पर सहमत हुए जिसमें हमारी दोनों सरकारों के सभी अंगों से विशेषज्ञ को लिया जाएगा जो नीति और व्यावहारिक सहयोग के मामलों में अपने विचार साझा करेंगे।
और हम एक दूसरे के साथ अधिक निकटता से मिलकर अफगानिस्तान में जमीनी काम कर रहे हैं। काबुल में हमारे मौजूदा राजदूत सर रिचर्ड स्टैग भारत में मेरे पूर्ववर्ती (उच्चायुक्त) रह चुके हैं। वह भारत और उसके हितों की समझ रखने के साथ-साथ अफगानिस्तान की भी समझ रखते हैं। काबुल में वह अपने भारतीय सहयोगी के साथ सामंजस्य के साथ मिलकर काम करते हैं और वह अकसर अपने विश्लेषण भारत सरकार के साथ साझा करने दिल्ली आते रहते हैं।
निष्कर्ष
अब जरा मैं आपके सामने संक्षेप में निष्कर्ष रख दूं। हम अफगानिस्तान में अपने एक साझा हित के लिए हैं और यह हित है अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को अक्षुण्ण रखना। यह काम हम अफगानों को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद देकर करना चाहते हैं। लेकिन एक सुरक्षित अफगानिस्तान के लिए केवल एक अच्छी सेना ही काफी नहीं। इसके लिए मजबूत संस्थाओं, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, सुशिक्षित जनता और बढ़ती समृद्धि की जरूरत होगी। ब्रिटेन इन सबको प्रोत्साहित करता रहेगा। हमें उम्मीद है भारत भी इसमें शामिल रहेगा– बल्कि, इसकी भागीदारी तो और अधिक रहेगी।
भागीदारी निभाते रहना खर्चीला है। लेकिन यदि इस भूमिका से बचा जाए तो वह हम सबके लिए और भी अधिक खर्चीला होगा। एक बार लियोन ट्रॉट्स्की ने कहा था: “भले ही आप युद्ध में दिलचस्पी न रखते हों लेकिन युद्ध को आपमें दिलचस्पी रहती है”।