भाषण

प्रथम विश्वयुद्ध के विदेशी वीर नायकों के सम्मान में बैरोनेस वारसी का अभिभाषण

बैरोनेस वारसी का उन स्मृति फलकों के अनावरण के अवसर पर दिया गया अभिभाषण, जिनमें उन 175 विदेशी वीरों का नाम उल्लिखित है जिन्हें प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
The Rt Hon Baroness Warsi

अनावरण के अवसर पर बैरोनेस वारसी के कहा:

योर रॉयल हाइनेस (महामहिम), देवियो और सज्जनो। इस अपराह्न, प्रथम विश्वयुद्ध के विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित वीरों की स्मृति में आप सबका यहां स्वागत करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है।

गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में महामहिम ड्यूक ऑफ केंट का स्वागत करते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है। राष्ट्रमंडल वार ग्रेव्स कमीशन के अध्यक्ष होने के नाते और रॉयल रेजिमेंट ऑफ फ्यूजिलियर्स के कोलोनल-इन-चीफ, फर्स्ट बटैलियन द राइफल्स के रॉयल कोलोनल तथा रॉयल एयर फोर्स के मानद एयर चीफ मार्शल की अपनी सैन्य भूमिका के जरिए महामहिम का उन अनेक वीसी प्राप्तकार्ताओं के साथ संबंध रहे हैं जिन्हें हम आज याद कर रहे हैं और यह विषय जितना मेरे हृदय से जुड़ा है उतना ही उनके हृदय से भी।

अगस्त 1914 में युद्ध के आह्वान का बुगुल-नाद संपूर्ण ब्रिटेन में गूंजा था और उसकी आवाज दुनिया के सुदूरतम कोने तक पहुंची थी।

इसे सुना गया ऑस्ट्रेलिया में, कनाडा और न्यूजीलैंड में और उस देश में जिसे हम आज भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा के नाम से जानते हैं, और साथ ही इसकी गूंज संपूर्ण अफ्रीका और कैरिबियाई देशों में भी सुनी गई जहां से लोग अपने खर्चे पर चलकर आए थे - सेना में नाम दर्ज करवाने।

और ब्रिटेन की सहायता के लिए आगे आकर और मित्र राष्ट्र के उद्देश्य को समर्थन देकर लगभग तीस लाख लोगों ने प्रत्युत्तर दिया। फ्लैंडर्स, यप्रेज, गैलिपोली और पस्चेंडील में टॉमीज के कंधे से कंधे मिलाकर तारीक और तेजिन्दर ने मिलकर युद्ध किए।

और यह बात एकदम साफ है कि उनके बिना ब्रिटेन और मित्रराष्ट्र कभी जीत नहीं सकते थे। उनके बिना हमारे पास हमारे वे अधिकार और हमारी स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं होती जो हमें आज हासिल है।

एक साल से थोड़ा समय पहले मैंने फ्रांस और बेल्जियम के युद्ध-मैदानों का दौरा किया। मेरी अपनी व्यक्तिगत तीर्थयात्रा।

मैंने नूव चैपल इंडियन मेमोरियल देखा जो भारतीय उप-महाद्वीप के उन लगभग 5000 सैनिकों का सम्मान करता है जिनकी कोई ज्ञात अंत्येष्टि स्थल नहीं रही; बेल्जियम के होलिबेक में मैंने सिख सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। और उस पंजाबी मुसलमान खुदादाद खान को याद किया जिन्होंने अकेले दम पर एक हाथ से शत्रुओं को तब तक रोककर रखा जब तक कि अतिरिक्त सैन्य सहायता नहीं आ गई जिससे वह इस महायुद्ध में विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले पहले वीर हुए; और मैंने यप्रेज के मेनिन गेट में उन 54,000 ब्रिटिश और विदेशी सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की जिनके अंत्येष्टि स्थल के बारे में भी कोई पता नहीं।

खान और सिंह, अली और अटवाल जैसे नामों को स्मिथ, जोंस, विलियम्स और टेलर जैसे नामों के साथ लिखा देखकर मुझे रुडयार्ड किपलिंग की वह पंक्ति याद आ गई जो फ्रांस में शहीद हुए एक अज्ञात सिपाही के कब्र पर लिखा है: “यह आदमी अपने देश में किन शक्तियों को पूजता था हमें नहीं मालूम, पर हम उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे उसे हमारे देश में उसकी वीरता और बलिदान के लिए आशीर्वाद दें।”

उनके द्वारा उठाई गई कठिनाइयों और उनके द्वारा भोगे गए संत्रास तथा उनके निःस्वार्थ बलिदानों के लिए हम उन सबके प्रति सदैव कृतज्ञ बने रहेंगे।

मेरे लिए वे सब महानायक थे।

लेकिन, आज हम यहां ब्रिटेन के उन अनेक विदेशी वीरों को याद करने के लिए एकत्र हुए हैं जिनकी साहस और धीरता विशिष्ट थी। ब्रिटेन के सर्वोच्च सैन्य सम्मान – विक्टोरिया क्रॉस से विभूषित करने हेतु “सर्वाधिक विशिष्ट वीरता, या शौर्य अथवा आत्मोत्सर्ग के कतिपय दुःसाहसिक या श्रेष्ठतम कृत्य अथवा शत्रु के समक्ष अपनी कर्तव्यनिष्ठा के प्रति उच्चतम समर्पण” के लिए 175 वीरों का मूल्यांकन किया गया।

वे वीर नायक हैं…

… कनाडा के प्राइवेट जॉन केर जिन्हें सोम्मे की लड़ाई के समापन दौर में 16 सितंबर 1916 को “सर्वाधिक विशिष्ट वीरता” के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। यह जानकर कि बम खत्म हो गए हैं प्राइवेट केर भारी गोलीबारी के बीच दुश्मनों की ओर दौर पड़े और उनके एकदम निकट जाकर उनपर प्वाइंट-ब्लैंक रेंज पर गोलियों की बौछार कर दी और उन्हें भारी क्षति पहुंचाई। दुश्मनों ने, यह सोचकर कि वे घिर गए हैं, समर्पण कर दिया। 62 सैनिक गिरफ्तार किए गए और 250 यार्ड दुशमनों की भूमि अपने कब्जे में की।

… या फिर न्यूजीलैंड के कैप्टन अल्फ्रेड शाउट जिन्होंने ऑस्ट्रेलियन इम्पीरियल फोर्स के साथ मिलकर युद्ध किया। कैप्टन शाउट को गैलिपोली प्रायद्वीप में लोन पाइन के खंदकों में उनकी सर्वाधिक विशिष्ट वीरता के लिए वीसी से नवाजा गया।

… और भारत के गोविन्द सिंह। 1917 में कैम्बरई युद्ध के दौरान उन्हें वीसी प्रदान किया गया, जहां उन्होंने खुली गोलीबारी के बीच 1.5 माइल जाकर अत्यावश्यक सूचनाएं पहुंचाकर, तीन अवसरों पर अपने साथी सैनिकों की जान बचाई, जिसमें हर बार उनके घोड़े को गोली लगी और बाकी की दूरी पैदल चलकर पूरी की।

आज, विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले केवल नौ व्यक्ति जीवित हैं। और यह मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है कि उनमें से दो आज इस अपराह्न बेला में हमारे बीच मौजूद हैं: सार्जेंट जॉन्सन बेह्री वीसी और कॉरपोरल मार्क डोनाल्डसन वीसी।

सार्जेंट बेह्री की कहानी आपमें से बहुतों को मालूम होगी। विक्टोरिया क्रॉस पाने के बाद 30 से अधिक सालों तक जीवित रहने वाले वह प्रथम सैनिक हैं। दो बार उन्होंने भारी गोलीबारी के बीच दुश्मनों का सीधा मुकाबला किया और जान पर खेलकर अप्रतिम वीरता दिखाते हुए उन्होंने अपने अपने साथी सैनिकों का जीवन बचाया।

कॉरपोरल डोनाल्डसन, जो आज ऑस्ट्रेलिया से यहां हमारे साथ शामिल होने के लिए आए हैं, जनवरी 2009 में ऑस्ट्रेलिया के लिए विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले प्रथम वीर हैं। वह अफगानिस्तान में तैनात थे जब उनके गस्ती दल पर घात लगाकर हमला किया गया। अपने घायल सैनिकों की ओर से तालिबान लड़ाकों का ध्यान भटकाने के लिए और घायलों को सुरक्षित स्थान पर जाने का अवसर देने के लिए उन्होंने जानबूझकर खुद को दुश्मन की गोलियों का निशाना बनाया।
ये कारनामे वीरता से बढ़कर हैं।

“हीरो (नायक)” शब्द आज बड़े धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। और मुझे विश्वास है कि आप मुझसे सहमत होंगे कि ये सभी लोग सही अर्थों में हीरो हैं। अगले चार वर्षों में, वार्षिक स्मृतिदिवसों से हमें आतीत और वर्तमान के विक्टोरिया क्रॉस विजेताओं के महत्वपूर्ण योगदानों को याद करने का अवसर मिलेगा ताकि हमारी पूरी पीढ़ी उन्हें जान और समझ सकें। और महायुद्ध के महानायकों के गुजरने के 5 सालों में यह और अधिक महत्वपूर्ण है कि अगली पीढ़ी उन्हें भूले नहीं।

इसीलिए…

… हम सभी वीसी विजेताओं के समाधि स्थलों के पुनर्निर्माण हेतु आर्थिक सहायता उपलब्ध करा रहे हैं;

… हम प्रथम विश्वयुद्ध के 400 ब्रिटिश विक्टोरिया क्रॉस विजेताओं का सम्मान उनके जन्म स्थान पर स्मारकीय पेविंग-स्टोन लगाकर करेंगे;

… हम इन हस्तशिल्प युक्त सुंदर कांस्य फलकों को उन अन्य 11 देशों में भेजेंगे जहां के वीरों ने वीसी विजित किए थे;

और अंत में, यह घोषित करते हुए मुझे खुशी हो रही है कि हम इस साल सभी वीसी विजेताओं के स्मरणार्थ एक डिजिटल आर्काइव का शुभारंभ करेंगे। इससे विभिन्न पृष्ठभूमियों वाले दुनिया भर के सभी लोगों को उनकी शौर्यगाथाओं को याद करने और उनसे सीख ग्रहण करने का अवसर मिलेगा।

आखिर में, जैसा कि मैंने शुरुआत में कहा था राष्ट्रमंडल देशों और अन्य देशों की महती सहायता और बलिदानों के बिना ब्रिटेन के लिए प्रथम विश्वयुद्ध से निबटना संभव नहीं था।

मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे दोनों दादा बॉम्बे रॉयल सैपर्स और माइनर्स रेजिमेंट में शामिल होकर द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लिए थे। अविश्वसनीय लगता है कि लोग, उनकी तरह, किसी ऐसे देश के लिए युद्ध करें जिसे उन्होंने कभी देखा भी न हो; और एक दूरस्थ राजा के प्रति निष्ठा की कसमें खाएं…यह सब कुछ आजादी के मूल्यों की खातिर। वह भी तब, जबकि खुद उन्हें आजादी का पूरा अनुभव नहीं था।

यह हमारे साझे इतिहास की समृद्ध विविधता को दर्शाता है और यह कि चाहे आपके परिवार की विरासत का इतिहास नॉरमन कॉन्क्वेस्ट से जुड़ा हो या आपके किसी रिश्तेदार ने एक शताब्दी पहले ब्रिटेन के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाई हो; चाहे आपके दादा नाइजीरिया से आते हों या आपके माता-पिता जमाइका के हों – यह स्मरणोत्सव हम सबके लिए महत्व रखता है।

और यह इस विचार को बल देता है कि आप मुस्लिम नहीं हो सकते न ही ब्रिटिश हो सकते; अपने देश के सेवक बनिए; सेना की मदद कीजिए- हमारे पूर्वजों ने यह 100 साल पहले किया था।

आज, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वतंत्रता, आजादी, कर्तव्य, साहस, निष्ठा, त्याग और दूसरों की परवाह जैसे जिन आदर्शों को, दुनिया के सामने जिनकी वे मिसाल बने और जिनके लिए वे लड़े, वे आज भी 1914 की भांति ही जीवित हैं— प्रजाति, धर्म या राष्ट्रीयता की सीमाओं से परे।

लेकिन यह शताब्दी कार्यक्रम हमें उन्हें याद करने का भी अवसर देता है जिन्होंने सही मायने में कर्तव्य की पुकार से भी परे जाकर किया— ब्रिटेन से बाहर के वे विदेशी वीसी विजेता, और मैं उम्मीद करता हूं आप सब इन स्मृति फलकों को उनके प्रति समुचित श्रद्धांजलि समझेंगे जो ऐसे स्मरण के रूप में है जो यही दर्शाता है कि ब्रिटेन उनके साहस और इस सशक्त संदेश को कभी नहीं भूलेगा कि एक समान हित के लिए दुनिया भर के विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोग एक जुट होकर काम कर सकते हैं।

आगे की जानकारी

देखें हमारा प्रेस रिलीज प्रथम विश्वयुद्ध के विदेशी नायकों को ब्रिटेन द्वारा सम्मानित किया जाना.

अधिक जानकारी हमारे प्रकाशन WW1 विक्टोरिया क्रॉस रेसिपिएंट फ्रॉम ओवरसीज से प्राप्त की जा सकती है।.

ट्विटर: @SayeedaWarsi पर विदेश कार्यालय मंत्री बैरोनेस वारसी का अनुसरण करें।

ट्विटर @foreignoffice पर विदेश कार्यालय का अनुसरण करें।

facebook और Google+ पर विदेश कार्यालय का अनुसरण करें।

Media enquiries

For journalists

ईमेल [email protected]

Updates to this page

प्रकाशित 26 जून 2014