भाषण

‘खबर वह है, जिसे कोई दबाना चाहे। बाकी सब केवल विज्ञापन है’

सर जेम्स बेवन, भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त का बृहस्पतिवार, 11 दिसंबर 2014 को दिल्ली में पत्रकारों से मुलाकात के दौरान दिए गए अभिभाषण की अनूदित प्रति।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
Sir James Bevan

सम्मानित अतिथिगण, मित्रो और सहयोगियो

मीडिया के हमारे मित्रों के लिए हमारे इस वार्षिक लंच में आप सबका स्वागत है। पत्रकारों और राजनयिकों की प्रवृत्ति एक-दूसरे के लिए जरा शंकालु होने की होती है। यदि आप एक नए ब्रिटिश राजदूत हैं और विदेश जाने की तैयारी में हैं, तो आपको मीडिया को संभालने के लिए विदेश कार्यालय का एक कोर्स करना होगा, और आपको जो पहली चीज बताई जाएगी, वह यह है कि ‘ऑफ द रिकार्ड’ जैसी कोई चीज नहीं होती।

लेकिन मेरा खयाल है कि हम राजनयिक और आप पत्रकार एक दूसरे पर शक करके गलत करते हैं। वास्तव में, मैं सोचता हूं कि हमें एक-दूसरे की इज्जत करनी चाहिए, क्योंकि हम दोनों एक ऐसे महत्वपूर्ण काम में लगे हैं, जो दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में सहायक है, और इसलिए कि हम वास्तव में बहुत कुछ एक जैसे हैं।

हम दोनों ही:

  • अपने आसपास की दुनिया में दिलचस्पी लेते हैं
  • संपर्क बनाने और चीजों को ढूंढ निकालने में कुशल होते हैं
  • अक्सर जटिल मसलों को सरल भाषा में अभिव्यक्त करते हैं
  • किस्सों में से यथार्थ निकालने में माहिर। न तो राजनयिक और न पत्रकार ही, सुनी हुई हर बात पर यकीन करते हैं।

हम दोनों ही सभ्य पेशेवर हैं। परस्पर मतभेदों को सुलझाने के लिए कूटनीति, युद्ध की अपेक्षा अधिक बेहतर तरीका है। और अच्छी पत्रकारिता वह है जो समाजों को मुक्त और सरकारों को ईमानदार बनाए रखे। जैसा कि वाशिंगटन पोस्ट के पूर्व प्रकाशक कैथेरीन ग्राहम अक्सर कहा करती थीं:

खबर वह है, जिसे कोई दबाना चाहे। बाकी सब तो विज्ञापन है।

हम दोनों सच बोलने को प्रतिबद्ध हैं। राजनयिकों को यह अपनी सरकारों को कहना पड़ता है, यहां तक कि जब वे इसे सुनना नहीं चाहते तब भी। पत्रकारों को यह अपने पाठकों को कहना पड़ता है, और यह उनका कर्तव्य है कि वे बिना किसी भय और समर्थन के बुरी खबरों और उसी तरह अच्छी खबरों के बारे में भी बताएं। वास्तव में मीडिया में बुरी खबरें, खासतौर पर इन दिनों सरकार के बारे में, एक अच्छी बात है, क्योंकि यह इसका स्पष्ट संकेत है कि हम एक स्वस्थ लोकतंत्र में रह रहे हैं। ऐसे देश जिनके अखबार अच्छी खबरों से भरे हैं, ऐसी जेल की तरह लगते हैं, जो अच्छे लोगों से भरे हैं।

हम दोनों अपने दोनों पेशों में समान जोखिमों का सामना करते हैं। इनमें से कुछ जोखिम तो बेहद वास्तविक हैं: कई पत्रकार- जिसमें 2014 के 100 से ज्यादा शामिल हैं- हर वर्ष खतरनाक जगहों पर घटनाओं की रिपोर्टिंग करते हुए मारे जाते हैं, और कई सारे राजनयिक भी इसी तरह: जैसे गत माह ब्रिटिश दूतावास के दो सदस्य काबुल में आतंकियों द्वारा मारे गए।

कुछ जोखिम, जिन्हें हम झेलते हैं, मनोवैज्ञानिक हैं: जो कुछ अधिकारप्राप्त लोग आपसे कहते हैं, उस पर शक करना अच्छा है, और पत्रकार तथा राजनयिक ऐसा ही करते हैं। लेकिन आपको उन संदेहों को व्यामोह तक ले जाने से बचना चाहिए: कई सारे राजनीतिज्ञ तथा सरकारी सेवक अच्छे लोग होते हैं, जो इस दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना चाहते हैं, सच बोलते हैं और विभिन्न परिस्थितियों में सही काम करने का प्रयास करना चाहते हैं।

हमारे दोनों पेशों के एक जैसे नियम हैं। पत्रकारिता का पहला नियम है: भवन से बाहर निकलें। यही राजनय का भी पहला नियम है या होना चाहिए।

जब तक आप दूतावास और राजनयिक तामझाम से बाहर नहीं निकलते हैं, आप यह नहीं जान सकते कि बाहर की वास्तविक दुनिया में क्या हो रहा है। यही वजह है कि मैंने भारत के 29 राज्यों में से हर एक का दौरा किया है, और जब भी बाहर निकला तो जिस तरह शानदार शहरों का दौरा किया उसी तरह अक्सर ग्रामीण भारत में भी बाहर निकल कर घूमा।

हम दोनों को साफ बातें पसंद हैं। मार्क ट्वेन ने कहा था:

वास्तविक दुनिया में, सही चीजें सही वक्त और सही समय पर नहीं हुआ करती हैं। यह इतिहासकारों और पत्रकारों का काम है कि वे उसे वैसा ही पेश करें, जैसी वे हैं।

और हम दोनों यह समझते हैं कि हमारे पेशों की पहली जरूरत लोगों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराना है, जो हम कह रहे हैं। अमेरिका के सबसे प्रभावशाली संपादकों में से एक, आर्थर ब्रिसबेन ने एक बार कहा था:

अगर आप अपनी पहली पंक्ति से अखबार के पाठक का ध्यान खींच नहीं लेते, तो आपको अगली पंक्ति लिखने की कोई जरूरत नहीं है।

इन सब के अलावा, संभवतः हम कुछ मामलों में अलग भी हैं। एक पत्रकार के तौर पर आपका काम है, आपकी चुनी हुई भाषा में यथासंभव स्पष्ट रूप से संपर्क स्थापित करना। यह कहा जाता है कि एक राजनयिक वह है जो सफलतापूर्वक विभिन्न भाषाओं में अपनी बातों से भ्रम पैदा कर सके।

और हम राजनयिकों को कभी-कभी आप पत्रकारों से थोड़ा सा अलग बर्ताव भी करना होता है, या कम से कम ऐसा करने का दिखावा करना होता है। ऐसी बातें हैं जो आप कर और कह सकते हैं, जिन्हें हम राजनयिक नहीं कर सकते, कदाचित, यदि हम ऐसी नकल करें तो यह आपके लिए अच्छी किंतु हमारे लिए बुरी होगी।

आपमें से कुछ ने कहा कि मेरा ट्विटर एकाउंट @HCJamesBevan थोड़ा उबाऊ लगता है।इसकी वजह यह है कि: मैं अपने काम को पसंद करता हूं और इसे करते रहना चाहता हूं। एक राजनयिक के लिए ट्विटर पर बहुत ज्यादा दिलचस्प होना उसकी बर्खास्तगी का एक त्वरित तरीका है। मुझे भारत अच्छा लगता है और मैं यहां रहना चाहता हूं।

तो अब मुझे अपनी बात खत्म करते हुए आप सब के काम और बीते वर्ष में आपके सहयोग के लिए आपका शुक्रिया अदा करने की इजाजत दीजिए। मैं आशा करता हूं कि अगले वर्ष भी मुझे आपलोगों से यहीं मुलाकात का सौभाग्य प्राप्त होगा- बशर्ते कि मैं अगले 12 महीनों में कुछ बेहद मूर्खतापूर्ण न कर बैठूं। इसी बीच मैं आपको प्रोत्साहित करता हूं कि आप अपने मुश्किल सवालों से मेरे जैसे लोगों को कठिनाई में डाल दें- लेकिन यहां इस वक्त नहीं।

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प्रकाशित 11 दिसंबर 2014