सुरक्षा गठबंधन : उभरती विश्व व्यवस्था में संचालक
भारत स्थित ब्रिटिश उच्चायुक्त सर जेम्स बेवन द्वारा 18 अप्रैल 2013 को नई दिल्ली के नेशनल डिफेंस कॉलेज में दिया गया भाषण।
भूमिका
(वाइस एडमिरल लान्बा, सीनियर फैकल्टी, पाठ्यक्रम के लब्ध-प्रतिष्ठित सदस्यों, मित्रों एवं साथियों)
आज सुबह नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) में आना और लब्ध-प्रतिष्ठित श्रोताओं को संबोधित करना अत्यंत सम्मान की बात है। और, ब्रिटिश उच्चायुक्त के नाते इस ऐतिहासिक भवन में आना मेरे लिए अधिक खुशी की बात है, जो मेरी जानकारी के अनुसार 1960 में एनडीसी की स्थापना से पहले ब्रिटिश उपउच्चायुक्त का निवास और कार्यालय रहा था। इसके बाद से ब्रिटेन और एनडीसी के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं और यह परम्परा आज तक बरकरार रहने पर मुझे खुशी है। मुझे आज ‘‘सुरक्षा गठबंधन : उभरती विश्व व्यवस्था में संचालक’’ विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया है।
और, इस भाषण में मैं श्रोता समूह को संबोधित करने वाले किसी भी सार्वजनिक वक्ता को दी जाने वाली पारम्परिक सलाह का अनुसरण करूंगा। यह सलाह है : श्रोताओं को पहले वह कहो, जो उन्हें कहने जा रहे हो; फिर वह कहो जो कहने के लिए आए हो; उन्हें कहो, इसके बाद उन्हें बताओ कि आपने उन्हें क्या कहा है। इसलिए, मैं आपको बताता हूं कि मैं क्या कहने जा रहा हूं। मैं :
इस बात से शुरु करूंगा कि मेरे अनुसार किस तरह की विश्व व्यवस्था उभर रही है,
इसके बाद उन बातों के बारे में बोलूंगा, जो इस नए विश्व में हम सभी को सुरक्षित बना सकती हैं,
इस सुरक्षा को बढ़ावा देने वाले गठबंधनों और साझेदारियों की भूमिका के बारे में बोलूंगा और इन शब्दों के साथ निष्कर्ष पर पहुंचूंगा कि इस नए विश्व के साथ व्यवहार में ब्रिटेन की आकांक्षा किस प्रकार की है।
1. नई विश्व व्यवस्था:
विश्व व्यवस्था बदलती जा रही है। एक युवा कूटनीतिज्ञ के तौर पर मैंने 1980 के दशक के मध्य में शीत युद्ध के अंतिम सालों के दौरान नाटो (नोर्थ अटलांटिक ट्रीटी ओर्गेनाइजेशन यानी उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) में कार्य किया था। लेकिन, आज हम जिस विश्व में रह रहे हैं, वह पहले के विश्व से बहुत भिन्न है। आज का विश्व तीन बड़े बदलावों के दौर से गुजर रहा है। वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आ रहा है। हम जिस विश्व में रह रहे हैं, वह नेटवर्क से अधिकाधिक जुड़ता जा रहा है। और, संघर्ष की प्रकृति बदल रही है।
वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आ रहा है। विश्व के दक्षिण और पूर्व में आर्थिक शक्ति एवं आर्थिक अवसर का सिलसिला जोर पकड़ रहा है। 1980 के दशक की समाप्ति के बाद इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक विकास और आर्थिक उदारीकरण के अलावा मुक्त बाजारों एवं व्यापार की वजहों से यह बदलाव हो रहा हैं। आज एशिया विश्व का केंद्र-बिंदु बन गया है। एशिया अब विश्व की संवृद्धि का इंजन है।
विश्व के केंद्र-बिंदु में इस बदलाव के चलते अतीत की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय फैसले अब अधिक और व्यापक समूहीकरणों में किए जाते हैं। इसका आंशिक कारण नई आर्थिक हकीकतें हैं : उदाहरणार्थ, जी 7 अब जी 20 के रूप में तब्दील हो चुका है क्योंकि ब्राजील, चीन और भारत जैसी नई शक्तियों के बिना अकेले पश्चिमी देशों द्वारा वैश्विक आर्थिक नीति पर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं रह गया है। यह बदलाव नई उभरती शक्तियों की राजनीतिक शक्ति में वृद्धि और उनकी बढ़ती वैश्विक पहुंच से संचालित हो रहा है। और, पड़ोसी देशों द्वारा अपना स्थानीय तालमेल एवं एकीकरण बेहतर बना कर अपने को अधिक सुरक्षित एवं समृद्ध करने की इच्छा से बदलाव आ रहा है। इसलिए, अफ्रीकन यूनियन और आसियन जैसे क्षेत्रीय संगठन तेजी से विकास की ओर अग्रसर हैं।
हम जिस विश्व में रह रहे हैं, वह नेटवर्क से अधिकाधिक जुड़ता जा रहा है। इसके दो बड़े संचालक हैं : सूचना क्रांति और जनता की अधिक मुक्त ढंग से आवाजाही। डिजिटल मीडिया, इंटरनेट, सेटेलाइट टेलीविजन और मोबाइल फोन की बदौलत हमें सूचना तक आसान पहुंच प्राप्त हुई है। पहले की तुलना में अब लोगों की पहुंच आसान हुई है। इससे सरकारों की तुलना में व्यक्तियों को अधिक अधिकार हासिल हुए हैं। अरब वसंत (अरब देशों में लोकतांत्रिक चेतना) इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जो बृहत्तर आर्थिक अवसरों और राजनीतिक बहुलतावाद की लोकप्रिय मांग से संचालित था। संवाद और बदलाव के लिए लोकप्रिय आंदोलन में जनता को एकजुट करने के सिलसिले में डिजिटल मीडिया के उपयोग से ‘अरब वसंत’ संभव हुआ।
लोगों की अधिक मुक्त ढंग से आवाजाही ने नेटवर्क से जुड़े विश्व के निर्माण में एक अहम भूमिका निभाई। अधिक उदारीकृत बाजारों से जनता की आवाजाही बढ़ी। अधिक धन-सम्पत्ति से लोगों की यात्रा में भारी वृद्धि हुई। और, सस्ती विमान यात्रा ने वैश्विक कनेक्टिविटी में भारी इज़ाफा किया।
नेटवर्क से जुड़े नए विश्व के अभ्युदय से राज्यों (यानी देशों) के बीच संबंधों पर अब सरकारों का एकाधिकार नहीं रह गया है। व्यक्तियों, सिविल सोसायटी, कंपनियों, दबाव समूहों और परोपकारी संगठनों के बीच नए मानवीय नेटवर्कों की स्थापना के चलते व्यक्ति एवं गैर-सरकारी संगठन अधिक प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। इस बदलाव ने एक देश के नागरिक के मतलब की सीमा-रेखा को धुंधला बनाना शुरू कर दिया है। उदाहरणार्थ, 10 में से एक ब्रिटिश नागरिक अब स्थायी रूप से विदेश में रहता है। इसी प्रकार, लाखों भारतीय विदेश में स्थायी रूप से रहते हैं।
और, इन बदलावों के साथ-साथ संघर्ष की प्रकृति बदल रही है।
1980 के दशक में नाटो के समय में हम नाटो के देशों और वारसा पैक्ट के देशों के बीच संघर्ष रोकना चाहते थे। लेकिन, आज हमारे सामने देशों के बीच संघर्ष बहुत बड़ा खतरा नहीं रह गया है। पहले देशों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा होती थी, पर अब जो खतरे मंडराते जा रहे हैं, वे आतंकवाद और विद्रोह के हैं, जिनकी लड़ाई राज्यों यानी देशों के खिलाफ है।
इस बीच, युद्ध के साधनों का विविधीकरण हो रहा हैं : अब एक लैपटॉप किसी राइफल की तरह खतरनाक हो सकता है और कुछ मामलों में तो यह उससे भी अधिक खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि किसी भी राइफल से कुछ लोग मारे जा सकते हैं, लेकिन एक कुशल हैकर पूरी आबादी के लिए खतरा पैदा कर सकता है। अब दो या अधिक देशों के बीच संघर्ष की तुलना में एक देश के भीतर ही अधिक संख्या में संघर्ष हो रहे हैं।
समुद्र में हमारी नौसेनाएं समुद्री युद्ध की तैयारियों में अधिकाधिक सक्रिय नहीं हैं, बल्कि समुद्री डाकेजनी के खिलाफ लड़ने में अधिक व्यस्त होती जा रही हैं। जमीन पर हम अधिक संख्या में छोटे और अधिक स्थानीय संघर्ष पैदा होते हुए देखते हैं। ये संघर्ष अक्सर उन देशों में होते हैं, जहां पहुंच आसान नहीं है, जंगल राज की स्थिति है और कुछ मामलों में ये नाकाम देश की श्रेणी में आते हैं। लेकिन, देश के भीतर इन संघर्षों से बाकी दुनिया को खतरा है। इन और अन्य संघर्षों में देश की नाकामी और/या सुशासन के अभाव से संघर्ष एवं खतरे के चक्र का दायरा व्यापक बनता जाता है।
इस बीच पुराने सुरक्षा खतरे नई कनेक्टिविटी का बेज़ा फायदा उठा रहे हैं। वेब कनेक्शंस ने आम व्यक्तियों के सशक्तीकरण और उन्हें एक-दूसरे के नज़दीक लाने का काम किया है, लेकिन विडम्बना यह है कि इसका बेज़ा फायदा आपराधिक गिरोह, साइबर अपराधी और आतंकी समूह उठा रहे हैं। इनमें से अनेक समूहों और गिरोहों का जाल अपने देश के बाहर फैला हुआ है, जिसके चलते उनसे लड़ना कठिन हो गया है।
इस कमरे में बैठे हममें से अधिकांश लोग यह जानते हैं कि हमने 20 या 30 साल पहले जब अपना करियर शुरू किया था तो उस वक्त की दुनिया की तुलना में आज की दुनिया अत्यधिक रूप से बदल चुकी है। समग्र रूप से देखें तो आज की दुनिया कहीं बेहतर है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लगभग चार दशकों तक मेरे महाद्वीप- यूरोप पर परमाणु विध्वंस का खतरा मंडराता रहा था, लेकिन अब यह खतरा समाप्त हो गया है। विश्व के अरबों लोगों को गरीबी से उबारा गया है। अरबों लोगों को पहले स्वतंत्रता हासिल नहीं थी, पर अब वे स्वतंत्रता का आनंद उठा रहे हैं। और, यद्यपि भारी असमानताएं बरकरार हैं, फिर भी आज का विश्व बेहतर स्थिति में है, जिसमें उभरती शक्तियां और उनके नागरिक सही ढंग से अधिक असरदार भूमिका निभा रहे हैं और अपना भविष्य स्वयं तय कर रहे हैं।
2. कौन सी बातें इस नए विश्व को सुरक्षित बनाती हैं:
अब मैं उन बातों का जिक्र कर रहा हूं, जो इस नए विश्व में हमें सुरक्षित बनाएंगी।
पहली बात, समृद्धि है। सफल और समावेशी आर्थिक संवृद्धि वाले देशों में आंतरिक संघर्ष होने या उनके द्वारा अन्य देशों में आंतरिक संघर्ष भड़काने की संभावना बहुत कम होती है। इसलिए, विश्व भर में सफलतापूर्वक विकास एवं संवृद्धि के लिए कार्य करना न सिर्फ न्यायसंगत, बल्कि शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना का अनिवार्य मूल मंत्र है।
दूसरी बात, लोकतंत्र है। लोकतंत्र अपने आपमें अच्छी बात है- इसमें लोगों को अपनी सरकारें चुनने और अपना भविष्य स्वयं तय करने का अधिकार होता है। और, खुले लोकतांत्रिक समाजों में अधिक समृद्धि का रास्ता खुलता है। लेकिन, लोकतंत्र शांति का एक असरदार संचालक भी है। वास्तविक रूप से लोकतांत्रिक देशों के बीच संघर्ष के उदाहरण बहुत कम पाए जाते हैं।
मुझ जैसे पेशेवर कूटनीतिज्ञ से इस नई शताब्दी में विश्व को सुरक्षित रखने वाली तीसरी बात की पहचान की अपेक्षा रखने पर मैं कहूंगा- कूटनीति। क्लॉविट्झ की प्रसिद्ध उक्ति है कि युद्ध अन्य साधनों से की जाने वाली राजनीति है। मैं इस उक्ति से असहमत हूं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि युद्ध एवं राजनीति अलग-अलग चीजें हैं और सैनिक समाधान राजनीतिक समाधानों से भिन्न होते हैं। और, हम संभवत: सहमत होंगे कि अपवादजनक परिस्थितियों को छोड़ कर सैनिक समाधानों की तुलना में राजनीतिक समाधानों को तवज्जो दी जाती है। और, कूटनीति इसी बारे में होती है : यानी ताकत के इस्तेमाल के बजाए वार्ता के जरिए राजनीतिक समाधान ढूंढ़ कर विश्व को अधिक सुरक्षित और समृद्ध बनाने का प्रयास।
सुरक्षा के लिए आवश्यक चौथी बात मजबूत प्रतिरक्षा है, जिससे इस कमरे में उपस्थित श्रोतागण भी सहमत होंगे। यदि आप शांति चाहते हैं तो युद्ध की तैयारी करें। जैसाकि एक कहावत है- मजबूत बाड़ पड़ोसियों को नेक बना देती है। खतरे बदलने के अनुसार मजबूत प्रतिरक्षा में बदलाव किए जाते हैं। और, अकेले सैनिक क्षमता के बूते युद्ध रोका नहीं जा सकता या सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती। लेकिन, सैनिक क्षमता एक आवश्यक पहलू है। ‘‘सॉफ्ट पॉवर’’ से आतंकवादियों या उद्दंड देशों पर काबू नहीं पाया जा सकता। इसके लिए आपके पास ताकत का होना भी आवश्यक है।
समृद्धि, लोकतंत्र, कूटनीति और मजबूत प्रतिरक्षा : ये हमें सुरक्षित बनाने की नई बातें नहीं हैं। लेकिन, जो एक बात नई है या 21वीं शताब्दी में अधिक महत्वपूर्ण बनती जा रही है, वह हमारे सामने उपस्थित खतरों से निपटने के लिए हम सभी द्वारा मिल कर सामूहिक कदम उठाना है। वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौतियां आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, टिकाऊ एवं समावेशी विकास हैं। ये वैश्विक चुनौतियां हैं, जिसका मतलब यह है कि यदि हम इनसे सफलतापूर्वक निपटना चाहते हैं तो हमें मिल कर कदम उठाने होंगे।
3. गठबंधनों और साझेदारियों की भूमिका
मैं अब नए विश्व में गठबंधनों की चर्चा करूंगा। मैं गठबंधन की व्यापक परिभाषा करना चाहता हूं क्योंकि आज के विश्व में गठबंधन स्वयं व्यापक होते जा रहे हैं और परिस्थितियों के अनुसार ढलते जा रहे हैं।
गठबंधन की पारम्परिक परिभाषा राज्यों यानी देशों के बीच गठजोड़ के रूप में की जाती है, जिसे संधि-आधारित बताया जाता है। उनका उद्देश्य आम तौर पर मजबूत प्रतिरक्षा एवं सुरक्षा करना होता है। लेकिन, अब अनेक गठबंधन पारम्परिक सैनिक गठबंधनों के दायरे के परे चले गए हैं, इसलिए हमें अब गठबंधनों के बारे में सिर्फ एक-दूसरे की प्रतिरक्षा के लिए प्रतिबद्ध संधि वाले देशों के समूहों के रूप में नहीं, बल्कि किसी चुनौती के मुकाबले के उद्देश्य से बनाए गए समूह के व्यापक अर्थ में सोचना चाहिए। इसे विशुद्ध सैनिक मायने में नहीं मानना चाहिए। अब पारम्परिक गठबंधनों के बजाए अधिकाधिक संख्या में आधुनिक साझेदारियां स्थापित की जा रही हैं।
इस प्रकार, आधुनिक गठबंधनों एवं साझेदारियों की प्रकृति में बदलाव आ रहा है। हम उन्हें जो कुछ कहें और वे जो कुछ करें, लेकिन उनकी सफलता के लिए एक या दो चीजें आवश्यक हैं।
इनका साझा मूल्यों पर आधारित होना आवश्यक है। उदाहरणार्थ, यूरोपियन यूनियन न सिर्फ एकल बाजार है। इसकी साझा यूरोपीय मूल्यों और अपनी रक्षा के संकल्प के आधार पर स्थापना की गई थी। राष्ट्रकुल विश्व का सर्वाधिक पुराना वैश्विक नेटवर्क है, जो इन साझा मूल्यों की रूपरेखा पर सहमति से स्थापित किया गया था : लोकतंत्र और कानून का शासन।
और, इन साझेदारियों या गठबंधनों के लिए किसी साझा खतरे या लक्ष्य का होना आवश्यक है। उदाहरणार्थ नाटो, जिसका ब्रिटेन अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सदस्य बना। एक प्रतिरक्षा गठबंधन के तौर पर यह हमारी सुरक्षा की गारंटी देता है। एक राजनीतिक गठबंधन के रूप में यह उत्तर अमेरिकी और यूरोपीय सहयोगियों के साथ सुरक्षा खतरों के बारे में चर्चा का एक अनूठा मंच प्रदान करता है। एक सैनिक गठबंधन के रूप में यह एक ऐसा ढांचा है, जिसके जरिए हम किसी भी संकट में शीघ्र मिल कर अपनी प्रतिरक्षा क्षमता को एकजुट कर सकते हैं, जैसाकि पिछले साल लीबिया के मामले में किया गया। एक भिन्न उदाहरण जी 20 का है, जिसके जरिए वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान सर्वाधिक असरदार ढंग से एकजुटता कायम की गई थी।
विश्व में वर्तमान खतरों से निपटने और अवसरों के मद्देनजर अन्य किस्म के गठबंधन उभर रहे हैं, जैसे - इच्छुक देशों के गठबंधन। इसका एक उदाहरण माली का मामला है। पारम्परिक अंतर्राष्ट्रीय ढांचे (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) ने माली में सैनिक कार्रवाई के लिए प्राधिकृत किया था। उसने एक देश की अगुआई में उन साझेदारों के गठबंधन को समयबद्ध कार्रवाई करने को प्राधिकृत किया, जिनके एक मसले विशेष पर साझा हित थे और वे उनकी रक्षा करना चाहते थे। फ्रांस के नेतृत्व में यह कार्रवाई की गई, जिसमें ब्रिटेन और अन्य देशों ने सहयोग दिया।
उभर रहे गठबंधन न सिर्फ मौजूदा विश्व को आकार दे रहे हैं, बल्कि स्वयं उनकी प्रकृति भी बदल रही है। ये सदैव देशों के बीच गठबंधन नहीं होते। देश अभी भी अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की प्राथमिक ईकाई हैं और भविष्य में भी रहेंगे। लेकिन, नेटवर्क से जुड़े इस विश्व में नॉन-स्टेट एक्टर (गैर-देशीय कर्ता) अधिक महत्वपूर्ण बनते जा रहे हैं और वे भी गठबंधन कायम कर रहे हैं।
इस प्रकार, अब देश से गैर-देशीय गठबंधनों का सिलसिला (स्टेट टू नॉन-स्टेट अलायंसेज) प्रारंभ हुआ है। उदाहरणार्थ, कुछ पश्चिमी देशों की सरकारें विदेश नीति के मामले में स्वयं अपने नागरिकों के साथ गठबंधन बना रही हैं। ब्रिटेन के विदेश मंत्री ट्विटर पर नियमित रूप से अपने देश की विदेश नीति एवं सुरक्षा के बारे में जनता से सवाल आमंत्रित कर उनका जबाव देते हैं और सरकार के कदमों के प्रति समर्थन जुटाते हैं। पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने अपने कार्यकाल के दौरान दुनिया भर में जनता के साथ 59 टाउन हॉल बैठकें की थीं।
गैर-देशीय गठबंधन भी कायम हो रहे हैं। भारत का उदाहरण हमारे सामने है, जहां गैस उत्पादन के लिए एक ब्रिटिश कंपनी- बीपी और भारतीय कंपनी- रिलायंस के बीच साझेदारी कायम की गई, जिससे भारत को अपनी भावी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति में मदद मिलेगी।
इस प्रकार, गठबंधन उतने ही पुराने हैं, जितना कि इतिहास। आज जो गठबंधन उभर रहे हैं, उनकी प्रकृति, उद्देश्य एवं ढांचा नए किस्म के हैं और आगामी सालों में यह सिलसिला जारी रहने की संभावना है।
4. ब्रिटेन का दृष्टिकोण:
हम आज जिस विश्व में रहते हैं और हम सभी जिन चुनौतियों का सामना करते हैं, उनके सिलसिले में अब मैं ब्रिटेन के दृष्टिकोण के बारे में कुछ बातें कहूंगा। लंबे समय से ब्रिटेन की वैश्विक जिम्मेदारियां और वैश्विक उच्चाकांक्षाएं रही हैं। हमें अपने मूल्यों के पालन के इतिहास पर गर्व है। हम इन मूल्यों पर अटल रहना चाहते हैं। और, हम उच्चाकांक्षी बने रहेंगे। लेकिन, जैसा विश्व में बदलाव आ रहा है, उसके मद्देनजर हमारा मानना है कि हमें नए तरीकों से अपनी सुरक्षा करनी होगी और अधिक रणनीतिक ध्यान देना होगा।
इसी वजह से ब्रिटेन की वर्तमान सरकार ने 2010 में सत्ता संभालने के बाद एक व्यापक रणनीतिक प्रतिरक्षा एवं सुरक्षा समीक्षा करने का काम सौंपा। इस समीक्षा के निष्कर्ष नीचे दिए जा रहे हैं, जो आप जिन देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके और अन्य देशों के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
पहला निष्कर्ष, हमारे द्वारा इस नए विश्व में बेहतर ढंग से राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिमों एवं अवसरों की पहचान और मॉनीटरिंग करना आवश्यक है। इस सिलसिले में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक नई राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का गठन किया गया है, जो विदेश नीति, सुरक्षा और प्रतिरक्षा के मसलों की जांच और फैसले लेने के लिए नियमित रूप से बैठकें करती हैं।
दूसरा, हमारे द्वारा हरसंभव तरीके से अस्थायित्व की वजहों को दूर करना आवश्यक है। इस सिलसिले में ब्रिटेन सरकार ने एक बड़ी धनराशि वाला अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार करने का फैसला किया, जिसके तहत कमजोर देशों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है और संघर्ष की वजहों को दूर किया जा रहा है। इसके अलावा, इसका लक्ष्य स्वयं ब्रिटेन में और उन देशों में लोगों को आतंकी बनने से रोकना है, जहां से आतंकवाद ब्रिटेन के लिए खतरा पैदा करता है।
तीसरा, हमारे द्वारा विश्व में अवसरों का लाभ उठाने और जोखिमों के प्रबंधन में बेहतर ढंग से प्रभाव डालना आवश्यक है। इस सिलसिले में ब्रिटेन सरकार एक मजबूत कूटनीतिक सेवा संचालित कर रही है, जिसके अन्तर्गत विदेशों में दूतावासों एवं उच्चायोगों के नेटवर्क का विस्तार किया गया है और विशेष रूप से सुरक्षा तथा समृद्धि पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
चौथा, हमारे द्वारा अपने देश में बेहतर ढंग से कानून का शासन लागू करना और अन्य देशों में उसकी मजबूती को बढ़ावा देना आवश्यक है। इस सिलसिले में ब्रिटेन ने आतंकवादियों एवं गंभीर संगठित अपराधों पर काबू पाने के लिए अपनी घरेलू कानून प्रवर्तन क्षमता को मजबूत किया है। हम अन्य देशों में एक समुचित एवं नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के समर्थन के लिए दुगुने प्रयास कर रहे हैं।
पांचवां, हमारे द्वारा बेहतर ढंग से प्रत्यक्ष खतरों से अपनी रक्षा करना आवश्यक है, चाहे ये खतरे शारीरिक या इलेक्ट्रॉनिक रूप में हों- भले ही ये देशीय या गैर-देशीय स्रोतों की ओर से हों। यह सुनिश्चित करने के सिलसिले में ब्रिटेन सरकार ने एक असरदार परमाणु प्रतिरोधक क्षमता (न्यूक्लियर डेटरेन्ट) बनाए रखने, सीमाओं पर नियंत्रण, अपनी पुलिस, खुफिया सेवाओं एवं सशस्त्र सेनाओं की क्षमता में वृद्धि का फैसला किया है ताकि बड़े आतंकवादी हमले से ब्रिटेन की रक्षा की जा सके। इसके अलावा, साइबर जैसे क्षेत्रों में नई क्षमताओं में निवेश किया गया है ताकि उभरते जोखिमों एवं खतरों से निपटा जा सके।
छठा, इसके साथ ही, हमारे द्वारा घरेलू मोर्चे पर अपनी रक्षा के उद्देश्य से हमें अन्य देशों में संघर्षों के समाधान और स्थायित्व में योगदान के लिए सक्रिय भूमिका निभानी आवश्यक है। यह सुनिश्चित करने के लिए ब्रिटेन सरकार ने सशस्त्र सेनाओं को मजबूत बनाने का फैसला किया है ताकि वे अन्य देशों में स्थायित्व लाने एवं सैनिक कार्रवाई करने और संकट की स्थिति में ब्रिटिश नागरिकों को बचा कर लाने में अधिक सक्षम बने। हम अन्य देशों में स्थायित्व कायम करने में एक अधिक एकीकृत नज़रिया अपनाएंगे और बेहतर ढंग से कूटनीति, विकास, सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्य साधनों का उपयोग करेंगे।
सातवां, हमारे द्वारा सभी प्रकार की आपात स्थितियों से निपटने के लिए घरेलू मोर्चे पर अधिक तालमेल कायम करना आवश्यक है ताकि सदमों से उबर सकें और आवश्यक सेवाओं को बरकरार रख पाएं। इस सिलसिले में ब्रिटेन सरकार ने कार्यक्रम तैयार किए हैं, जो देश की उन ढांचागत सुविधाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे, जिन्हें हमले, क्षति या विध्वंस की स्थिति में चलाना अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा, बेहतर संकट प्रबंधन क्षमताओं का निर्माण किया गया है।
हमारी रणनीतिक समीक्षा के अंतिम, किंतु महत्वपूर्ण निष्कर्ष का संबंध मेरे इस भाषण से सीधे जुड़ा हुआ यह है कि ब्रिटेन द्वारा भविष्य में अधिक प्रभावोत्पादक नतीजे पाने के लिए अकेले नहीं, बल्कि गठबंधनों एवं साझेदारियों के साथ कार्य करना आवश्यक है। जहां कहीं संभव हो, यह कार्य किया जाना चाहिए।
इस सिलसिले में ब्रिटेन सरकार देश की प्रादेशिक प्रतिरक्षा और हमारे सहयोगी देशों की सामूहिक सुरक्षा के लिए नाटो के प्रति संकल्पबद्ध है। वह यूरोपियन यूनियन (ईयू) के प्रति संकल्पबद्ध है, जो समृद्धि और सुरक्षा दोनों को बढ़ावा देता है। ब्रिटेन अपने अंतर्राष्ट्रीय सैनिक गठबंधनों में योगदान देने, तुलनात्मक राष्ट्रीय लाभ के क्षेत्रों (जैसे- हमारी खुफिया क्षमताओं और अत्यंत क्षमतावान सेनाओं) पर ध्यान केंद्रित करने, और अपने, सहयोगी देशों और साझेदारों के बीच सैनिक क्षमताओं एवं प्रौद्योगिकियों को साझा करने के प्रति संकल्पबद्ध है।
यहां उपस्थित श्रोताओं की पृष्ठभूमि के मद्देनजर मैं ब्रिटिश सशस्त्र सेनाओं के बारे में कुछ शब्द कहूंगा। ब्रिटेन विश्व में एक सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वाधिक बहुमुखी प्रतिभावान सशस्त्र सेनाओं को बनाए रखने को कृत-संकल्प है। हालांकि हम अपनी अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए बजट में कटौतियां कर रहे हैं, लेकिन हम अपनी सैनिक क्षमता के बारे में महत्वाकांक्षा बनाए रखेंगे।
इस प्रकार, ब्रिटेन सरकार एक सुसज्जित थलसेना बनाए रखेगी। हम उन देशों में से एक हैं, जो विश्व में कहीं भी समुचित ढंग से सैनिक टुकडि़यों की तैनाती में समर्थ हैं और उन्हें अनिश्चित काल तक तैनात रख सकते हैं। हम अपनी थलसेना को अधिक गतिशील बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ये अब वर्तमान और भावी खतरों का सामना करने में अधिक समर्थ है। इन्हें मौजूदा और भावी संघषों से निपटने के लिए अधुनातन उपकरण मुहैया कराए गए हैं।
ब्रिटेन एक नौसैनिक ताकत के रूप में बना रहेगा। हमारा इरादा उस क्षमता को बरकरार रखने का है, जो सिर्फ विमानवाहक पोत प्रदान कर सकते हैं। इस क्षमता से विश्व में किसी भी जगह से मित्र-देश की जमीन पर हवाई सैनिक ओं की मदद के बिना वायुसेना की तैनाती संभव है। हम सर्वाधिक क्षमतावान न्यूक्लियर पावर्ड हंटर-किलर पनडुब्बी का एक बेड़ा प्राप्त कर रहे हैं। हम छह टाइप 45 डेस्ट्रोयर्स का उत्पादन पूरा कर लेंगे। हम अधिक आधुनिक फ्रिगेट्स का विकास भी करेंगे, जिनका वर्तमान समय में नशीले द्रव्यों की तस्करी, समुद्री डाकेजनी और आंतकवाद के प्रतिरोध के लिए नौसेना के पास होना अत्यावश्यक है।
जहां तक रॉयल एयर फोर्स का संबंध है, इसमें 2020 तक विश्व में दो सर्वाधिक क्षमतावान लड़ाकू जेट विमान शामिल किए जाएंगे। एक आधुनिकतम टाइफून/यूरोफाइटर होगा, जो हवा से हवा और हवा से जमीन पर मार करने में पूरी तरह सक्षम होगा। दूसरा जॉइंट स्ट्राइक फाइटर विमान होगा, जो युद्ध में विश्व में सर्वाधिक उत होगा। युद्ध और गहन सर्वेक्षण की दृष्टि से मानवरहित एयर व्हीकल्स- फास्ट जेट का बेड़ा जल्दी ही तैयार होगा और यह पुन: ईंधन भरने की दृष्टि से सक्षम होगा। हम अपने रणनीतिक हवाई परिवहन बेड़े में भी वृद्धि कर रहे हैं।
और, जैसाकि मैंने कहा- हम अपनी स्वतंत्र परमाणु प्रतिरोध क्षमता को बनाए रखेंगे और उसका नवीकरण करेंगे। यह अनिश्चतता के इस युग में ग्रेट ब्रिटेन की बीमा पॉलिसी के समान है।
निष्कर्ष
अब मैं सारांश पेश करता हूं और बताता हूं कि मैंने आपसे क्या कहा है।
एक नई विश्व व्यवस्था उभर रही है। ब्रिटेन इसका स्वागत करता है। यह नई व्यवस्था समग्र रूप से पूर्ववर्ती व्यवस्था की तुलना में बेहतर है। लेकिन, यह बहुत अधिक जटिल भी है।
जो चीजें इस नए विश्व में हमें सुरक्षित बनाएंगी, वे पुराने विश्व में काम करने वाली चीजों से भि नहीं हैं। ये चीजें हैं- समृद्धि, लोकतंत्र, कूटनीति, मजबूत सशस्त्र सेनाएं। लेकिन, खतरे राष्ट्रपारीय हैं, जो नई बात है। इसके मद्देनजर हमारे द्वारा अपनी सुरक्षा के लिए अधिक सामूहिक प्रयास अत्यावश्यक हैं।
इसका मतलब यह है कि अतीत की तुलना में वर्तमान में गठबंधनों एवं साझेदारियों की अधिक बड़ी भूमिका है। लेकिन, ये गठबंधन अधिक जटिल, लेकिन कम स्थायी होंगे। ये गठबंधन सिर्फ देशों के बीच नहीं, बल्कि उनके परे भी अधिकाधिक होंगे।
ब्रिटेन इस नए विश्व में सक्रिय भूमिका निभाना जारी रखेगा और इन नई साझेदारियों के संग मजबूत आधुनिक कूटनीति एवं मजबूत आधुनिकतम सशस्त्र सेनाओं का रास्ता अपनाता रहेगा।
इस प्रकार, यह सारांश है। यदि आप अंत में सारांश का सार चाहते हैं तो वह है- खतरे नए एवं जटिल हैं, लेकिन समाधान पुराना और आसान है। इसे इन चंद शब्दों भी में व्यक्त किया जा सकता है : हम मिल कर मजबूत बनते हैं।