भाषण

महिलाओं के प्रति हिंसा समाप्ति हेतु केरल में आयोजित कार्यशालाओं में आर फर्नांडिस की टिप्पणियां

महिलाओं के प्रति हिंसा का समापन विषय पर केरल में ब्रिटेन के समर्थन से एक कार्यशाला की सप्ताह-भर चलनेवाली श्रृंखला का उद्घाटन समारोह 5 दिसंबर 2015 को एर्नाकुलम स्थित सेंट टेरेसा कॉलेज में आयोजित किया गया।

यह 2015 to 2016 Cameron Conservative government के तहत प्रकाशित किया गया था

दूसरे दिन किसी ने मुझे एक ‘सामाजिक प्रयोग’ की वीडियो क्लिप दिखाई। इसमें एक पार्क में एक जोड़ा दिखाया गया था; जिसमें पुरुष महिला से जोर-जोर से झगड़ रहा था और उसे पीट रहा था। निश्चित रूप से दोनों अभिनेता थे, वास्तविक युगल नहीं। राहगीरों ने महिला को रोता हुआ देखा और सुना। कुछ थोड़ा सा रुके भी, पर चलते रहे। कुछ लोग रुक गए और दिलचस्पी या उत्सुकता से घूरते रहे, फिर चलते बने। उस जोड़े को अलग करने या पुरुष को चुनौती देने के लिए कोई भी आगे नहीं आया। उस क्लिप का अंत इस भयानक प्रश्न के साथ होता है कि- क्या आप सहायता के लिए रुकेंगे? आप क्या करेंगे? हमारे श्रेष्ठ उत्तर हममें से कुछ के लिए शर्मनाक हो सकते हैं। लेकिन यह सवाल हमेशा मौजूद है। केवल आज के लिए नहीं बल्कि प्रत्येक दिन। हमें अपनी धारणाओं, अपने व्यवहारों, अपनी आदतों को जांचने की जरूरत है। आज हमारा इस प्रकार एकत्र होना विचार करने, सीखने की उसी इच्छा का संकेत है।

हम अपने सहभागियों लॉयर्स कलेक्टिव, कल्चरल एकेडमी फॉर पीस और एचआरएलएन के शुक्रगुजार हैं। हम केरल विधिक सेवा प्राधिकार, लोक अभियोजक निदेशालय तथा पुलिस अकादमी से प्राप्त सहयोग का भी शुक्रिया अदा करते हैं। सिस्टर विनिथा तथा डॉ. साजिमोल तथा सेंट टेरेसा के शिक्षक तथा छात्रगण, आप सभी को केरल में इस महत्वपूर्ण शुरुआत के अवसर पर मेजबानी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। भारत के एक प्रमुख महिला कॉलेज होने के नाते आपने इस राष्ट्रीय परियोजना के प्रति एकजुटता दिखाई है। माननीय न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के हमारे साथ मौजूद होने से भी हम अत्यंत सम्मानित अनुभव करते हैं। धन्यवाद महोदय, आपकी उपस्थिति और आपके समर्थन के लिए। हमें खुशी है कि केरल की कार्यशाला, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिह्नित संयुक्त राष्ट्र की सक्रियता के 16 दिनों के समानांतर आयोजित है। हम राष्ट्रीय तथा वैश्विक रूप से एक आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए आप सभी के प्रति शुक्रिया अदा करते हैं।

हम केरल के गृहमंत्री मि. चेन्निथला, सामाजिक न्याय मंत्री डॉ. मुनीर और केरल के मुख्य न्यायाधीश श्री भूषण को उस ढांचे के लिए भी धन्यवाद देते हैं, जिसे उन्होंने सृजित तथा वर्षों तक परिपोषित करने में योगदान दिया है। यह इसलिए कि आप तथा अपके सहकर्मियों ने सम्मिलित रूप से इतने परिश्रम से कार्य किया है कि इस प्रकार की कार्यशालाएं इतनी प्रभावी हैं।

इस वर्ष के प्रारंभ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति महोदय ने कहा जिसे मैं उद्धृत कर रहा हूं: “समानता, स्वतंत्रता और गरिमा हमारे देश की महिलाओं के लिए कोई दूरस्थ लक्ष्य या शौकिया आकांक्षाएं नहीं हैं। ये उनके पावन अधिकारों में आते हैं। ये विशेषाधिकार नहीं हैं जिसकी उन्हें इच्छा होनी चाहिए। ये हमारी उन आचार संहिताओं के मुख्य तत्व रहे हैं जिसे हमारे प्राचीन समाजों में उनके लिए 3000 से भी अधिक वर्षों पूर्व से अनुशंसित किया गया है। यह हमारी संस्कृति है, यह हमारी विरासत है।”

अतः, किस प्रकार ब्रिटेन एक परिवर्तन लाता रहा है?

2010 में ब्रिटेन ने एक अंतर-सरकारी रणनीति प्रकाशित की, महिलाओं तथा बालिकाओं के प्रति हिंसा की समाप्ति के लिए एक आह्वान। मार्च 2015 में, सरकार द्वारा प्रगति के विवरणों की एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इसमें सम्मिलित प्रगति थीं- घरेलू प्रतारणा को अपराध बनाना, जबरन विवाह को अपराध बनाना, नए कठोर कानून, महिला जननांग विकृति पर कानून मजबूत करना।

जुलाई 2015 में, ब्रिटेन द्वारा 3.2 मिलियन पाउंड के एक नए कोष की शुरुआत की गई, जिससे स्थानीय निकायों को घरेलू झगड़ों को रोकने और समाधान करने में मदद मिले। यह वर्तमान 40 मिलियन पाउंड के अतिरिक्त है, जो ब्रिटेन में महिलाओं के प्रति हिंसा रोकने की सहयोगी सेवाओं तथा विशेषज्ञ हेल्पलाइनों के लिए पूर्व निर्धारित है।

ब्रिटेन, विश्वविद्यालय परिसरों में महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने और बंद करने के लिए एक व्यवहार संहिता के निर्माण में भी सहायता कर रहा है। ब्रिटेन के केंद्रीय मंत्रिपरिषद की एक तिहाई सदस्य महिलाएं हैं।

गत माह ब्रिटेन ने अबूधाबी में आयोजित वीप्रोटेक्ट सम्मेलन के दौरान ऑनलाइन बाल यौन शोषण के समाधान पर एक वैश्विक चर्चा प्रारंभ की थी।

ब्रिटेन यह सुनिश्चित करने का कार्य कर रहा है कि सार्वजनिक कोष से सहायता प्राप्त सभी वकील यौन प्रतारणा के मामलों में कार्य करने के लिए पीड़ितों के प्रशिक्षण के विशेषज्ञ हों।

कैसे ब्रिटेन भारत के अंदर तथा साथ मिलकर एक परिवर्तन ला रहा है?

ब्रिटेन भारत में परियोजनाओं को सहायता देता है जो बालिकाओं में सुरक्षा तथा यौन शोषण के प्रति जागरुकता पैदा करने, जनजातीय महिलाओं की वृहत्त सामाजिक सहभागिता सुनिश्चित करने, महिलाओं के लिए काम करनेवाले नागरिक सामाजिक संगठनों में क्षमता निर्माण करने के लिए कार्यरत हैं। गत माह, ब्रिटेन ने, लैंगिक मुद्दों तथा प्राथमिकताओं पर हमारे साझा विचारों को और बढ़ावा देने के उद्देश्य से ब्रिटेन जानेवाली भारतीय महिला नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल को समर्थन दिया। अतः, भारत में, परिवर्तन लाने का हमारा सबसे वृहत्त तरीका सहभागिता के माध्यम से है। इस सप्ताह केरल में हम जिन कार्यशालाओं को समर्थन प्रदान कर रहे हैं, वे इसीके प्रतीक हैं। हमने गत माह तमिलनाडु में भी इसी प्रकार की कार्यशालाएं आयोजित की थीं।

केरल में हम तीन तरीकों से परिवर्तन ला रहे हैं:

  • प्रथम, हमें आशा है कि जो अधिकारी एर्नाकुलम और त्रिशूर की कार्यशालाओं में भाग ले रहे हैं, वे केरल भर में अपने-अपने जिलों तथा शहरों में ये नए विचार लेकर जाएंगे।

  • द्वितीय, इन कार्यशालाओं के परिणामस्वरूप एक नए प्रारूपित शिक्षण तथा सहभाजन मैनुअल का विकास होगा, जिसे ऐतिहासिक तथा नए कानूनों और व्यवहारों के संदर्भ में प्रासंगिक बनाने और बेहतर ढंग से समझने के लिए, भारत भर के महिलाओं के प्रति हिंसा रोकनेवाले कार्यकर्ताओं, वकीलों द्वारा प्रयुक्त किया जा सकता है। इसका प्रारूप अगले वर्ष के प्रारंभ तक तैयार हो जाना चाहिए और हमें आशा है कि इसका अंतिम प्रारूप इसके तुरंत बाद नई दिल्ली में आयोजित एक राष्ट्रीय प्रसार समारोह में पेश कर दिया जाएगा।

  • तृतीय, आज हम महिलाओं के प्रति हिंसा की दो पुस्तिकाओं के मलयालम संस्करण प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसके प्रकाशन में हमारा सहयोग रहा है- यह संघर्ष करने वालों तथा वकीलों के लिए है। केरल के सामाजिक न्याय विभाग का शुक्रिया, जिसके सहयोग से इन पुस्तिकाओं को थोक में मुद्रित किया जाएगा तथा केरल भर में महिलाओं तथा महिलाओं के प्रति हिंसा रोकने में कार्यरत वकीलों में वितरित किया जाएगा।

आखिरकार, हम जो कुछ भी करते हैं- और जो नहीं करते हैं, उसके चयन के लिए पूरी तरह जिम्मेवार हैं: हमारे विचार, हमारे कार्य, हमारे शब्द, हमारी चुप्पी के मुद्दे। हमें ‘परिवर्तन लाने’ के लिए हमेशा किसी और के आगे आने का इंतजार नहीं करना चाहिए- स्वयंसेवी संगठन, सरकार, पुलिस, न्यायपालिका, अकादमिक समुदाय, मीडिया आदि कोई भी। हां, इन सबों की भी एक भूमिका है, लेकिन जब कभी कहीं इस तरह की कोई घटना या इसका जोखिम हो, हमें अपने आप से अवश्य पूछना चाहिए: हमारी क्या जिम्मेवारी है? मेरी क्या जिम्मेवारी है? मैं क्या करने जा रहा हूं?

आइए, एक परिवर्तन लाएं- सहभागिता के माध्यम से। मुझे आशा है कि आज इस समारोह के शुभारंभ तथा कार्यशालाओं के माध्यम से उत्तरदायित्व बोध के प्रति हमारे संकल्प विशेष रूप से सुदृढ़ होंगे- सकारात्मक, त्वरित तथा मानवीयता से परिपूर्ण।

स्टुअर्ट एडम, प्रमुख,
प्रेस तथा संचार
ब्रिटिश उच्चायोग, चाणक्यपुरी
नई दिल्ली 110021
टेलीफोन: 44192100; फैक्स: 24192411

मेल करें: आर फर्नांडिस

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प्रकाशित 5 दिसंबर 2015