'अच्छे आचरण वाली महिलाएं शायद ही कभी इतिहास रचती हों'
10 दिसंबर 2014 को “कानून की व्याख्या (डिकोडिंग द लॉ)” और “यौन हिंसा पीड़ितों के लिए मार्गदर्शन (अ गाइडेंस फॉर सर्वाइवर्स ऑफ सेक्सुअल वायलेंस)” के विमोचन के अवसर पर भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त सर जेम्स बेवन, के अभिभाषण की अनूदित प्रति।
आज मानवाधिकार दिवस है। मानवाधिकार सबके लिए है दुनिया में हर जगह के लोगों के लिए। और नारीवाद भी सबके लिए है या इसे सबके लिए होना चाहिए, क्योंकि नारीवाद इस बात का प्रबल पुष्टिकरण है कि स्त्रियां मनुष्य हैं।
तो इसलिए मैं भी खुद के नारीवादी होने पर गर्व महसूस करता हूं। मुझे यहां सबके मानवाधिकार, खास कर दुनिया की आधी जनसंख्या- महिलाओं के मानवाधिकार का समर्थन करते हुए गर्व महसूस हो रहा है। और, दुनिया भर में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली यौन हिंसा को रोकने के आपके प्रयासों के लिए मुझे अपना व्यक्तिगत और ब्रिटिश सरकार का समर्थन व्यक्त करते गर्व हो रहा है।
यह मेरे लिए व्यक्तिगत है। मैं तीन बेटियों का गौरवान्वित पिता हूं। मैं दोस्तों, सहकर्मियों, परिजनों के रूप में उन महिलाओं को जानता हूं जिन्होंने यौन हिंसा की त्रासदी झेली है। मैंने इससे हुए नुकसानों को देखा है। और अपने करियर के दौरान मैंने एक बहुत ही सरल और सकारात्मक बात सीखी है: वह यह कि सफल विकास के लिए एक करिश्माई गोली है और इसे आप दो शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं- ‘बालिका शिक्षा’। शिक्षित बालिकाएं सशक्त औरतें बनती हैं। सशक्त औरतें अपना भविष्य खुद गढ़ती हैं और ऐसा करने में हम सभी का भविष्य बेहतर बनाती हैं।
यौन हिंसा महज एक भारतीय समस्या नहीं है। यह एक वैश्विक समस्या है। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में हर तीन में से एक महिला अपने जीवन में कभी न कभी यौन दुर्व्यवहार या यौन हिंसा का शिकार होती हैं। वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक बड़ा है।
ब्रिटेन में भी हम महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की चुनौतियों का सामना करते हैं। इसलिए जहां हम यह चाहते हैं कि हमारे भारतीय मित्र इस समस्या ने निबटने में हमारे अनुभवों से सीखें, उसी तरह हम ब्रिटेन के लोग यहां भारत में आपके अनुभवों से भी सीखना चाहते हैं। यदि हमें इस समस्या से सफलतापूर्वक निबटना है तो हमें मजबूत बनना होगा। और साथ मिलकर हम और अधिक मजबूत होंगे।
यह केवल मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। यह मेरी सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण है। ब्रिटिश सरकार महिलाओं के विरुद्ध होने वाले भेदभाव और हिंसा के लड़ने के लिए दुनिया भर के अपने साझेदार देशों के साथ मिलकर काम करती है।
2012 में तात्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री विलियम हेग ने यौन हिंसा को रोकने के लिए एक वैश्विक प्रयास की शुरुआत की थी। हमारा लक्ष्य है इसे रोकने में देशों, संस्थानों और समुदायों की क्षमता मे वृद्धि लाना, पीड़ितों की मदद करना, उनके साथ खड़े होना और दोषियों को कानून के हाथों से बच निकलने से रोकना। इस साल की शुरुआत में लंदन में हमने यौन हिंसा रोकने के विषय पर आज तक के सबसे बड़े वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया। हम ब्रिटेन के लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि अब यह एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रयास बन गया है।
महिलाओं के साथ भेदभाव और हिंसा से निबटने में भारत अपनी चुनौतियों से जूझ रहा है। हर साल विश्व आर्थिक फोरम वैश्विक लिंग अंतराल पर एक रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें दुनिया भर के विभिन्न देशों में महिलाओं की स्थितियों की तुलना की जाती है। इसमें अर्थव्यवस्था, राजनीति, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों मंं महिलाओं की भागीदारी तथा हर देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता को मापने में उनकी उत्तरजीविता दर (सर्वाइवल रेट) का आकलन किया जाता है।
2014 की नवीनतम वैश्विक लिंग अंतराल रिपोर्ट में 142 देशों को लिया गया है और महिला समानता पर उनकी स्थितियों के अनुसार उनकी रैंकिंग की गई है। सबसे ऊपर, पहले पायदान पर आइसलैंड है। ब्रिटेन का स्थान 26वां और भारत का 114वां है। महिलाओं के स्वास्थ्य और उत्तरजीविता के संदर्भ में, जिसमें लिंगानुपात और स्वस्थ्य जीवन प्रत्याशा का आकलन किया जाता है, भारत की स्थिति और भी चिंताजनक है- जहां यह 142 देशों में 141वें स्थान पर है, यानी इस मामले में दुनिया की सबसे बुरी दशा वाला दूसरा देश।
इसलिए कोई भी इस बात की गंभीरता से प्रतिवाद नहीं कर सकता कि आज भारतीय महिलाओं और लड़कियों को भारी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। आप उन समस्याओं को मुझसे बेहतर जानते हैं। लेकिन कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि भारत ने इन समस्याओं से निबटने में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
इस देश ने यह प्रगति अपने बहादुर नागरिकों- पुरुषों और महिलाओं के बल पर की है जिन्होंने उस प्रगति के लिए संघर्ष किया है। हर जगह पर, और अपने कार्यकाल के इन तीन सालों में, भारत के सभी 29 राज्यों में यात्रा करते हुए मैंने उनमें से कुछ से मुलाकात की है।
आप उनमें से कुछ प्रेरणादायी लोगों को केन्द्र और राज्यों की सरकारों में भी पा सकते हैं, उनमें राजनेता और अधिकारी हैं, जिला कलेक्टर हैं और पंचायत प्रमुख हैं- जिन्होंने महिलाओं के जीवन सुधारने में समर्पित भाव से काम किया है। आपको वे भारत की न्यायपालिका में भी मिलेंगे- साहसी न्यायाधीश, वकील और पुलिसकर्मी और वे महिलाएं जिन्होंने महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। वे आपको संसद और विश्वविद्यालयों में, व्यावसायिक संगठनों और एनजीओ में भी मिल जाएंगे। और आप उनसे उन दूर-दराज के गांवों में भी भेंट कर सकते हैं जहां कभी कोई जाने की जहमत नहीं उठाता। लेकिन वे हैं, और इस महान देश में वे महिलाओं की दशा में सुधार लाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।
इस संघर्ष में जो लोग अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं उनमें से कई इस कक्ष में आज उपस्थित हैं, और मैं उनमें से हर एक को सलाम करता हूं। लेकिन बहुत से लोग यहां नहीं है। दरअसल, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की लड़ाई लड़ने वाले बहुत से महत्वपूर्ण लोग ऐसे हैं जो अज्ञात रह जाएंगे, जिन्हें हम कभी जान नहीं पाएंगे। वे स्थानीय स्तर पर संघर्ष करने वाले सामान्य लोग हैं जो महिलाओं और लड़कियों का जीवन बदलकर इस दुनिया और अधिक बेहतर बनाने की कोशिशों में लगे हैं। आइए हम आज उन्हें भी सलाम करें।
अमेरिकी लेखिका एलिस वाकर ने कहा था कि लोगों के लिए अपनी ताकत से वंचित रहने का सबसे सामान्य वजह यह है कि वे सोचते हैं उनके पास यह है ही नहीं। हमारे पास ताकत है, हम सबके पास है, और जितना हम सोचते हैं उससे कहीं बढ़कर है। महत्वपूर्ण है इस बात को समझ लेना और यह समझना कि हम अपनी ताकत का इस्तेमाल कैसे करें।
ठीक इसी तरह अपने अधिकारों को जानना भी महत्वपूर्ण है और यह जानना भी कि उन अधिकारों का मान किस तरह बना रहे। .
इसी कारण, मैं आज यहां हिन्दी में प्रकाशित दोनों किताबों के विमोचन के अवसर पर मौजूद होकर अत्यंत प्रसन्नता अनुभव कर रहा हूं। इस साल की शुरुआत में आपके साथ मुझे इन पुस्तकों के अंग्रेजी संस्करण का विमोचन करने का गौरव मिला था, और मुझे आज यहां उनके हिंदी संस्करणों के विमोचन के अवसर पर दुगुनी प्रसन्नता हो रही है। वे लोगों को उनकी अपनी बोली जाने वाली भाषा में शक्ति प्रदान करेंगी- खासकर उन महिलाओं और लड़कियों को जिन्होंने यौन हिंसा या उत्पीड़न की त्रासदी खुद झेली हैं।
मैं लॉयर्स कलेक्टिव वूमंस राइट्स इनिशिएटिव, उसके एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुश्री जैसिंह तथा इस प्रयास में शामिल सभी लोगों को बधाई देता हूं। हमें इस बात की खुशी है कि हम आपका समर्थन करते हैं। और हम ऐसा करना जारी रखेंगे।
अपनी बात खत्म करने से पहले मैं आपके साथ अपना एक चहेता उद्धरण साझा करना चाहूंगा जो अक्सर मेरी बेटियां मुझसे कहा करती हैं। यह है, : “अच्छे आचरण वाली महिलाएं शायद ही कभी इतिहास रचती हों”। आज मैं अच्छे और बुरे आचरण वाली उन तमाम महिलाओं को सलाम करता हूं जिन्होंने इतिहास रचे हैं। मैं आप सबको बुरे व्यवहार करने को प्रोत्साहित करता हूं।
मेरा मानना है गांधीजी इस मुद्दे पर हमारे साथ होते। बहुत साल पहले गांधीजी ने कहा था, जो आज भी उतना ही सही है जितना तब था:
बहुत से लोग खासकर अज्ञानी लोग आपको सच बोलने के लिए, सत्य पर रहने के लिए और इस बात के लिए कि आप ‘आप’ हैं सजा देना चाहेंगे। कभी भी सत्य पर रहने के लिए, अपने समय से वर्षों आगे रहने के लिए क्षमाप्रार्थी न बनें। यदि आप सही हैं और यह बात आप जानते हैं तो अपने मन की कहें। अपने मन की कहें। यदि आप अल्प मत में हों, तब भी सत्य तो सत्य है।